Tuesday, 20 January 2015

घोर अघोर- Ghor Aghor

अघोर का अर्थ जो घोर हो घोर से भी घोर और उसे भी घोरतर हो पर उस घोर में रह कर भी लीन ना हो । घोर का अर्थ किसी भी रूप में लिया जाये अगर मोह माया का लिया जाये तो महादेव मोह माया के घोर स्वरुप में हैं हर संतान सम है उनके लिए । महादेव की संतान मनुष्य पशु पक्षी दानव दैत्य सब हैं । महादेव को सबसे मोह है। मोह के घोर से भी घोर रूप में महादेव सबसे जुड़े हुए हैं । पर उस परम मोह में रह कर भी महादेव उस मोह से पृथक हैं । मोह होकर भी मोह नहीं है। प्रेम है अत्याधिक प्रेम है पर प्रेम नहीं है।  यही अघोर की परिभाषा है।
अघोर साधक अपने शिष्य से मित्र से मोह का बंधन रखता है । अगर शिष्य के ऊपर कोई विपदा आये गुरु उस विपदा के समक्ष खड़े होते हैं । शिष्य का व्यथा गुरु से बेहतर कौन जाने जब गुरु महामाया से भीगी आँखों से शिष्य के विपदा निवारण हेतु प्रार्थना करते हैं ।
पर ऐसा बंधन होते हुए भी बंधन नहीं होता ।
जब सब कुछ हो फिर भी ना हो । यही अघोर की परिभाषा है ।
अलख आदेश ।।।

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