Wednesday 21 January 2015

औघड़ वाणी- Aughad waani

भूत वर्तमान और भविष्य जीवन के स्तम्भ हैं । पर वर्तमान है कहाँ? अभी जो पढ़ा या किया वो भूत में चला गया और जो पढने वाले हो वो भविष्य है । पग बढाया वो भूत जो बढाने वाले हो भविष्य ।
वर्तमान का सन्दर्भ किस तथ्य पर सुशोभित होता है ।
वर्तमान शायद एक त्रिकोण के उस जोड़ के सामान है जो बिंदु से भी छोटा है । एक रेखा भविष्य है एक भूत । जो व्यक्ति उस वर्तमान में स्थिर हो गया वो कभी बदला ही नहीं । ऐसी अपेक्षा बस एक साधक से की जा सकती है जो परम हो गया ।
ना भूतकाल उसे अपने में समाहित कर पायेगा ना ही भविष्य की चिंता उसे परेशान कर पायेगी ।
जिसके शरीर को कभी क्षति नहीं पहुचेगी ना ही उसका मन कभी विचलित होगा ।
शायद परम परमात्मा उस वर्तमान रुपी अति सूक्ष्म जोड़ पर विराजमान हो भूत और भविष्य को नियोजित रूप से चला रहे हैं । एक साधक की परम गति तब होगी जब वह भी उस वर्तमान रुपी जोड़ पर प्रभु से लीन हो जाये ।
साधक का मुख्य कार्य गहन से गहन रूप की व्याख्या समझनी होती है । उत्सुकता और गहन अध्ययन किसी भी रूप की वर्तमान रुपी अति सूक्ष्म जोड़ को समझने की गति प्रदान करता है ।
अन्यथा जो भूत और भविष्य के ऊपर घूमता रहा वो उसी उधेड़बुन में भविष्य रुपी काल और भूत रुपी गत में फस गया ।
अलख आदेश ।।।
http://aadeshnathji.com/aughad-waani-8/

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