Wednesday 21 January 2015

श्रद्धा और भक्ति - Shraddha aur bhakti

श्रद्धा किसी और से प्रभावित होकर नहीं की जाती । श्रद्धा भक्ति और विश्वास अपने अनुभव से होता है । कोई साधक अपने गुरु के लिए किसी से भी लड़ जाता है और कोई समझाता है । उसी तरह अगर कोई अपने गुरु के बारे में बताये तो पहले उनसे चर्चा करें । उनकी भक्ति को समझे । उनकी भक्ति से मार्ग दर्शन लें ।
कोई जब मुझसे मेरे गुरुदेव के बारे में कहता है । मेरी प्राथमिकता होती है पहले उनसे संपर्क करो । ज्ञान प्राप्त करो । उनका मुझे शिश्य रूप में स्वीकार करना मेरे लिए महामाया कि कृपा थी । शायद किसी और लिए कोइ और कारन हो सकता है । क्यूंकि साधना पथ पर आप अकेले चलते हैं ।
गुरु पथ का मार्ग दर्शन कर महामाया के सामने खड़ा कर देते हैं । पर दर्शन करना किस रूप में माँ का दर्शन होगा यह स्वयं की श्रद्धा है ।
गुरु कहें हर जीव पदार्थ में शिव हैं महामाया हैं । साधक उनका अनुसरण करे पर हर जीव के आँखों में माँ का दर्शन करे । अपनी अपनी श्रद्दा है । अतः मार्ग दर्शन लें संतों से मिलें । ज्ञान प्राप्त करें । किसी ने गुरु बना लिया आवश्यक नहीं की वो आपके भी गुरु बन जाएँ ।
कुछ सांसारिक कहते हैं इस संत से जुड़े हुए व्यक्तियों में सब उच्य स्थान पर हैं । किसी भी चीज का आभाव नहीं है । क्या संत संगती धन प्राप्ति के लिए की जाती है? कदापि नहीं ।
संत संगती आत्म शुद्धि एवं स्वयं चिंतन के लिए की जाती है । जब आत्मा शुद्ध होगी एवं आत्म क्षमता का आभास होगा तब सारे मार्ग स्वयं दिखेंगे । उत्तीर्णता स्वयं में आत्मसात होगी । कोई मार्ग अवरुद्ध नहीं होगा ।
अलख आदेश ।।।
http://aadeshnathji.com/shraddha-bhakti-vishwas/

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