Wednesday 21 January 2015

अविरल धारा- Aviral dhara

मैं तो नदी की अविरल धारा हूँ बहता रहूँगा ,बिना रुके बिना ठिठके ।
जो मिलेंगे मिलता जाऊंगा जो छूटेंगे छोड़ता जाऊंगा पर बहता जाऊंगा ।
कुछ साथ चलेंगे तो लेकर चलता जाऊंगा ।
कुछ ज्ञान रूपी जल को मिलायेंगे समाहित कर चलता जाऊंगा ।
कुछ ज्ञान रूपी जल को पि लेंगे पिलाता जाऊंगा ।
कुछ गंदगी धोयेंगे धोता जाऊंगा पर बढ़ता जाऊंगा ।
कुछ पत्थर फेंक केे आनंद लेंगे देता जाऊंगा पर बढ़ता जाऊंगा ।
कुछ मेरे बहाव को रोकेंगे तो घूम कर बढ़ता जाऊंगा ।
कुछ की शक्ति अधिक है साधन सक्षम हैं तो रुक जाऊंगा ।
पर समय समाप्त होते ही निकल जाऊंगा पर बढ़ता जाऊंगा ।
अंत में महामाया रुपी महासमुद्र है । जिसमे समाहित हो जाऊंगा ।
स्व मैं मेरा मुझे मुझसे घाव गंदगी एवं सबके दुःख और घृणा को खो जाऊंगा ।
अंत में माँ की गोद में सो जाऊंगा ।
अविरल बढ़ता हुआ अंत में थम कर माँ की गोद में विश्राम कर पाउँगा ।
अलख आदेश ।।।

http://aadeshnathji.com/aviral-dhara/

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