Friday 27 February 2015

औघड़ वाणी

औघड़ वाणी:  अगर संन्यास के बाद भी भौतिक मोह व्याप्त है और सांसारिक प्रतिष्ठा की भूख है तो संन्यास का कोई मायने नहीं है । हर साधक के कर्म पूर्व निर्देशित होते हैं । दिखावे का चोला और दिखावे का संन्यास क्षणिक है ।
कुछ सन्यासी कहते हैं अकेले में क्या किया जाए ?
अकेलापन और संसार से दूर अगर रहने का निर्णय कर संन्यास लिया गया है तो मन को संयमित कर बाँध कर अगर इष्ट में रमन करना प्रमुख है । अन्यथा समाधी के बाद भी आत्मा इसी चक्कर में भटकती रहेगी ।

अलख आदेश ।।।

Sunday 22 February 2015

अघोर और सांसारिक

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


                                            अघोर से सांसारिक अपने सांसारिक सोच को समक्ष रख कर बाते करते हैं । कभी कोई साधक कहता है बंधन निवारण मन्त्र या विधि बता दो । कोई यंत्र उत्कीलन । कोई कहता है मन्त्र कैसे जागृत करते हैं यह बता दो । प्रेमी को सम्मोहन करने का मन्त्र बता दो । प्रेमिका को वश में करने का मन्त्र या उपाय बता दो । धन प्राप्ति का उपाय बता दो ।
                                              जब अघोर विधि से सोचता हूँ तो इतने मन्त्र अघोर तो याद रखते ही नहीं । जिस प्रकार आदेश हुआ या शक्तियों का सन्देश हुआ कार्य कर लेते हैं । अघोर के सारे क्रिया कलाप उलटे एवं साधारण विधि विधान से अलग होते हैं ।
                                           किसी देव को भोग देने की बात हुई खुद खा लिया । हवन में मदिरा पी के दाल दी । कहा ले लो भोग । कलवा को भोग देने की बात हुई अपने शिष्य को खिला दिया , शिष्य को भोग का असर भी नहीं हुआ और कलवा खुश हो गया । अलग अलग भाव अलग अलग प्रयोग । ऐसे प्रयोग कर पाने के लिए मन के भाव सम एवं स्वयं सक्षम होना होता है ।
                                      मुख्य यह है कि सांसारिक इन बातों को कैसे समझे । जब सांसारिक अघोर के पास समस्या लेकर आये तो पूर्ण श्रद्धा और समर्पण लेकर आये । दुविधा और दोहरी मानसिकता में अघोर के पास आओगे तो खुद परेशान होगे और अघोर के क्रोध भाव को भी झेलना पड़ेगा ।
                                   अघोर के प्रयोग शक्तियों द्वारा प्रेरित होते हैं ऐसे में अघोर के पास गए सांसारिक के बाधा निराकरण हेतु अलग अलग आदेश प्राप्त होते हैं । जिसमे कभी दुर्लभ वस्तुओं का प्रयोग निहित होता है कभी हवन ।अब उस प्रयोग में होने वाली विशिष्ट वस्तुओं को अघोर कहा से लेकर आएगा । ना धन का संग्रह करता है ना ही वस्तुओं का । ऐसे में वस्तु कौन लेकर आएगा ? या विशिष्ट हवन में धन कहा से लाएगा । किसी व्यथित सांसारिक का काम छोटे प्रयोग से हो जाता है किसी का बड़े कार्य के बाद ही संपन्न होता है ।
                                     सांसारिक को लगता है अघोर पैसे लेता है । कभी अघोर को महल में रहते देखा? कभी अघोर को मसान से बाहर रहते देखा ? मसान में धन से अघोर क्या करेगा ?
                                 अघोर ना ही कभी किसी किए सम्बन्ध तोड़ने का कार्य करेंगे ना ही वश में कर कोई कार्य कराने का । ऐसे में कुछ सीधा बोलते हैं पाखंडी हो नहीं हो तो काम करो मेरा । एक ने तो लिखा नफरत करती हूँ आप लोगों से । आप सब पैसे लेते हो । नहीं लेते तो मेरा प्रेमी जो मेरा फायदा उठा रहा है उसे वापस ला दो शादी करा दो ।अलग अलग बहाने अलग अलग मानसिकता । ऐसे में अघोर उनका स्वागत तो नहीं कर सकता । ना ही अघोर के संग रहने वाली शक्ति उससे प्रसन्न रहेगी ।
क्रोध भाव तो झेलना पड़ेगा ही ।।
अलख आदेश ।।।

अघोर वार्ता

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


                           अघोर साधकों से बात करते समय संयम आवशक है । कई ऐसे महानुभाव हैं जो अघोर के निष्ठुर बर्ताव को नहीं समझ कर उनके विरुद्ध में बोलना शुरू कर देते हैं । अभी हाल में एक महानुभाव “मनु मेहता” महाशय ने कहा अगर शक्तियों का दम है तो सट्टे का नंबर बताओ , समझाने के प्रयास पे शुरू हो गए गाली गलौच करने । कुछ ऐसे भी हैं की मिलने आये और शुरू हो गए अपना पिटारा लेकर ये कर दो वो कर दो, ऐसा हुआ है वैसे कर दो वैसे हुआ तो ऐसे कर दो ।
                       इस बात से बेखबर होकर की एक अघोर साधक के कर्म, वाणी और सोच बस इष्ट के अनुसार ही चलते हैं । एक अघोर साधक खुद को बड़ा नहीं बताता है , अघोर साधक के सारे कर्म इष्ट के नियम और आदेश के अनुसार ही होते हैं ।अब शक्तियां हैं तो क्या सट्टे का नंबर पता करवाएं? या किसी प्रेमी प्रेमिका को मिलाने चल दें ?
                  सांसारिक एवं भौतिक प्राप्ति से अघोर को क्या लेना देना । उसे जो चाहिए वो तो वो पा ही लेगा । आवश्यक है आप क्या पाना चाहते हैं एक अघोर से ? स्वयं सक्षम बनना या सांसारिक सुख प्राप्त करना जो अत्यंत ही सूक्ष्म है । क्षण भंगुर तत्व की प्राप्ति तो आपके मृतप्राय देह के सामर्थ्य से संभव है । सांसारिक और भौतिक प्राप्ति से प्रमुख है स्वः को सक्षम बनाना ।
               सांसारिक उपलब्धि किस क्षण समाप्त हो जाए किसी को नहीं पता होता है । पर आध्यात्मिक उपलब्धि जन्मो जन्मो तक साथ चलती है । ऐसे बस कहना नहीं अटल सत्य है । आप के ज्ञान से अर्जित धन कुछ समय तक ही चल सकता है पर ज्ञान मृत्योपरांत भी आपसे जुड़ा रहता है ।
             प्रमुख है की स्वः सक्षम बने, इष्ट पर पूर्ण विश्वास और निःस्वार्थ प्रेम करें । इष्ट का स्वरुप एक माता के सामान होता है । जिसे अपने पुत्र के बोलने और सोचने से पहले पता होता है की पुत्र को क्या चाहिए । ऐसे में या तो आपके चाहने से पूर्व मातृ स्वरुप इष्ट सारी इक्षाएं पूर्ण कर देती है ।
            अब आप यह सोचो क्या बस जो शीघ्र लक्ष्य प्राप्त करना है या पूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति चाहिए क्षणिक इक्षा पूर्ण करनी है या सर्वोच्य इक्षा को पूर्ण करना है ?अघोर के पास जाओ तो आशीर्वाद मांगो, क्षमता मांगो, और इष्ट दर्शन की कामना करो । सांसारिक एवं क्षणिक वस्तुए मांगोगे तो वो अघोर को क्षण में क्रोधित करेगा । और कोप का भागी होना पड़ेगा ।
अलख आदेश ।।।

http://aadeshnathji.com/aghor-warta/ 

एक प्रार्थना सद्गुरुदेव से

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


एक प्रार्थना सद्गुरुदेव से -

हे सद्गुरुदेव हे मेरे जीवन के आधार
मेरे शरीर की आत्मा मेरे प्राणों के प्राणधार
मुझपे एक नजर कर दो
कुछ ऐसा अद्भुत असर कर दो
ना दिखे कोई जीव ना इंसान
बस दिखे आपका ही प्रकाश
जहा जाऊं बस आपको ही पाउ
जब ना दिखो आप तो संसार त्यागूँ
बस आपका चरण ही है मेरा संसार
हे सद्गुरुदेव बस इतना कर दो उपकार
ना दिखे मुझे आपके बिना कोई संसार
अलख आदेश ।।।
–मेहुल मकवाना
http://aadeshnathji.com/ek-prarthna/ 

सनातन धर्म की विडम्बना

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


                                           क्या यही सनातन समाज है । जहां इष्ट की पूजा में चमत्कार का कोई स्थान नहीं था । और आज चमत्कार दिखाने वाले को भगवान् बना दिया जाता है । इष्ट का कोई महत्त्व नहीं है ? चमत्कार दिखा अनुयायी बन गए और लड़ने लगे उनके नाम पर । अपने गुरु को सबसे ऊपर दिखाने के क्रम में अंध श्रद्धा को बढ़ावा देते लोग । ज्ञान की क्या यही सनातन समाज है । जहां इष्ट की पूजा में चमत्कार का कोई स्थान नहीं था । और आज चमत्कार दिखाने वाले को भगवान् बना दिया जाता है । इष्ट का कोई महत्त्व नहीं है ? चमत्कार दिखा अनुयायी बन गए और लड़ने लगे उनके नाम पर । अपने गुरु को सबसे ऊपर दिखाने के क्रम में अंध श्रद्धा को बढ़ावा देते लोग । ज्ञान की बाते सुन के या पढ़ के ख़ुशी ख़ुशी प्रवचन करते गया लोग एवं स्वः में कुछ भी आत्मसात ना करते लोग । कहाँ गया हमारा सनातन धर्म । हर समय सनातन धर्म का डंका बजाते लोग । सनातन धर्म सबसे ऊपर बताते और कार्य तुच्छता का करते लोग ।बाते सुन के या पढ़ के ख़ुशी ख़ुशी प्रवचन करते गया लोग एवं स्वः में कुछ भी आत्मसात ना करते लोग । कहाँ गया हमारा सनातन धर्म । हर समय सनातन धर्म का डंका बजाते लोग । सनातन धर्म सबसे ऊपर बताते और कार्य तुच्छता का करते लोग ।

अघोर पंथ

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


क्या अघोर पंथ खतरों से भरा हुआ है?
                                      हाँ अघोर पंथ खतरों तथा अप्राकृतिक अनुभूतियों से भरा हुआ है ।  इस पंथ के साधक अक्सर विपरीत बुद्धि के होते हैं । जब मन में आया माँ को प्रेम किया कभी बेताली बोल दिया कभी पिशाचिनी बोल दिया । पर प्रेम ह्रदय से करते हैं । ना कोई छल ना कपट ना ही कोई इर्ष्य रखते हैं ।  साधारणतः साधक की इक्षा होती है माँ सौम्य रूप में दर्शन दे । पर अघोर पंथ के साधक माँ को प्रचंड रूप में ध्यान करते हैं । प्रचंड रूप की साधना में प्रचंड अनुभूति एवं अद्भुत विपरीत अनुभूति होती है ।
 
अघोर पंथ के साधक महामाया तथा महाकाल में रमे हुए होते हैं ।
 
                                अघोर पंथ की परीक्षा भी कठिन होती है । जो साधक परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ वो सब कुछ पाया अन्यथा सब कुछ त्याग कर भूल गया ।अघोर उन साधकों के लिए कदापि नहीं है जो भय में साधना करते हैं । भैरव की साधना करते समय भय दूर करने के लिए हनुमान जी की फोटो जेब में रखते हैं कि अगर कोई भूत प्रेत आया तो हनुमान जी रक्षा करेंगे ।
                        रक्षा तो अवश्य होगी पर प्रेत राज क्रोधेश स्वयं रक्षा कर लेंगे । कुछ पाना है तो कुछ परेशानियों से गुजरना भी पड़ेगा ।आग का दरिया है डूब के जाना है।इस दरिया में डूबना तो है बस डूब जाना है। उस पार वही लगायेंगे । अगर खुद कोशिश की निकलने की तो प्रभु बैठ कर मुस्कुराएंगे  ।
अलख आदेश ।।।

अघोर सूत्र

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


काला निकाल कर लाल डालो
अंजरी बजरी सब खा लो
चार उंगल थी आठ उंगल फटी
तब नाथो के आगे नाठी ।।
अघोर साधक के लिए ये चार पंक्ति अति मूल्यवान हैं । साधना में अग्रसर होते हुए साधक के कर्तव्य अति तीक्ष्ण हो जाते हैं । थोडा स ध्यान भटका और बदनामी के गर्त में गिरे । कलिकाल के दौर में साधकों का मक्खन लगाने वाले संसारिकों से दूर रहना अति कठिन है । ऐसे कई गृहस्त साधक हैं जिनका प्रयास संसारिक प्रपंच से दूर रहना होता है ।
                                  परंतु कलिकाल के गर्त में सन्यासी साधक को भी सांसारिक मोह माया बांध लेती है । ऐसे में साधक क्या करे?
                            काले का अर्थ संसार के सभी विकार हैं और लाल पूण्य के घोतक । साधक के लिए आवश्यक है संसार में आने वाली हर चीजों को स्वीकारे चाहे वो भोज्य हो या अभोज्य, स्वीकार करने योग्य हो या नहीं । स्वीकार वो सबको करे पर जो ग्रहण के योग्य हो बस उसी को ग्रहण करे ।संसार में हैं तो संसार से विमुख होना आवश्यक नहीं है । संसार में मोह भी है माया भी है । लोभ भी है क्षोभ भी है । इन सबके साथ रह कर भी इनमे ना फसना साधक का कर्त्तव्य है । कमल के पत्ते पर जल की बूँद के सामान । कीचड में रहकर भी सुंदरता । यही साधक के लक्षण हैं ।
                                 साधना पथ से विचलित ना होना । समय के उंच नीच में सामान रहना ।साधारण मनुष्य चार आयाम तक सोच या देख सकते हैं । जब साधक सहज भाव से साधना में अग्रसर होता है तब उसके अष्ट आयामी दृष्टि कोण उसे महादेव प्रभु श्री आदिनाथ के सामने खड़ा करते हैं ।
                           अगर सांसारिकता के मोह ऐवम मायाजाल में फसे तो बस यहाँ की सुलभता पर ऐश कर सकते हैं और वाह वाही लूट सकते हैं । पर यह मनोरंजन और वाह वाही और सुलभता पल पल आपको वापस संसार में खींच रही होती है । शब्दों में ना कह पाएं और शब्दों को बदलने से मन के भाव नहीं बदल पाते । सांसारिक किसी महानुभाव के शब्दों की जयजयकार करते हैं । पर मन और कर्म के भाव की प्रमुखता महादेव के सामने खुल कर आती है ।
                             अपने कार्यों को संतुलित करें और मन के भाव को साधना पथ पर रखें । शब्दों का सूक्ष्मता से चयन करें । अन्यथा महामाया का अधो त्रिकोण रुपी परीक्षा तल इसी संसार के कर्मों में बाँध देगा ।।
अलख आदेश ।।।