Friday, 13 February 2015

संत

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 

                                  एक संत मनोहारी बाग़ में भ्रमण कर रहे थे । उस बाग़ में उन्हें एक गुलाब पसंद आया । उन्होंने उस गुलाब को इष्ट को समर्पित करने हेतु एवं साधना में उपयोग हेतु तोड़ लिया । उनकी मंशा साधना हेतु पवित्र थी । पर उस गुलाब को तोड़ते समय उनकी उँगली में एक काँटा चुभ गया ।संत ने उस व्यथा की ओर ध्यान नहीं दिया और साधना में लग गए ।
                              कुछ दिन के उपरान्त उस जगह जहाँ काँटा चुभ गया था वहां अत्यधिक दर्द हो रहा था । पर संत तो संत थे उन्होंने उस दर्द को संयम कर उस दर्द को स्वयं समाप्त होने का मौका दिया ।कुछ दिनों के उपरान्त जब दर्द और अधिक बढ़ गया तो उन्होंने उस घाव को दबा के देखा । उस घाव में कुछ कीड़े जन्म ले चुके थे । और उनकी उपस्तिथि से विष का निर्माण हो रहा था । संत अपनी साधना एवं ध्यान में समय नहीं दे पा रहे थे । उस विष से उन्हें और ज्यादा परेशानी होने लगी थी ।
                             अंत में उन्होंने निर्णय लिया की अगर इस ऊँगली की वजह से पुरे शरीर को नुक्सान हो और साधना में ध्यान में अगर मन ना लगे । हमेशा बस इस जख्मी ऊँगली को ही देखता रहूँ तो बाकी काम कैसे होगा । अंततः उन्होंने उस ऊँगली को काट दिया ।दर्द तो हुआ व्यथा भी हुई । पर जिस अंग से या जिस कारन से पुरे शरीर को परेशानी हो उसे त्यागना बेहतर है ।
                             अगर बाकी उंगलियाँ उसी ऊँगली से जुडी रहती तो वो स्वयं विष से ग्रसित हो जाती । और शरीर किसी कार्य को करने में असक्षम हो जाता । त्याग करने के संत ने उस ऊँगली का परिक्षण भी किया ।
कीडों की संख्या उस ऊँगली में बढती जा रही थी और उनकी भनभनाहट भी बढ़ रही थी । वो सारे कीड़े उसी ऊँगली के स्वाद को पूर्ण समझ कर मौज में चिल्ला रहे थे । संत उनकी भाषा समझ कर हंस पड़े । बोले तुम लोग उसी ऊँगली के स्वाद में मजे करो पुरे शरीर का स्वाद चख नहीं पाओगे । मुस्कुराते हुए संत अपनी राह पर बढ़ गए ।।।

अलख आदेश ।।।



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