Friday 27 February 2015

औघड़ वाणी

औघड़ वाणी:  अगर संन्यास के बाद भी भौतिक मोह व्याप्त है और सांसारिक प्रतिष्ठा की भूख है तो संन्यास का कोई मायने नहीं है । हर साधक के कर्म पूर्व निर्देशित होते हैं । दिखावे का चोला और दिखावे का संन्यास क्षणिक है ।
कुछ सन्यासी कहते हैं अकेले में क्या किया जाए ?
अकेलापन और संसार से दूर अगर रहने का निर्णय कर संन्यास लिया गया है तो मन को संयमित कर बाँध कर अगर इष्ट में रमन करना प्रमुख है । अन्यथा समाधी के बाद भी आत्मा इसी चक्कर में भटकती रहेगी ।

अलख आदेश ।।।

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