Tuesday 10 February 2015

अघोरत्व

                                       ॐ सत नमो आदेश श्रीनाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

                                        अघोरत्व बस एक पदवी या कोई पंथ नहीं है । यह एक अवस्था है । ऐसी अवस्था जिसमे एक साधक सहज और सरल हो जाता है । इष्ट की अनुभूति सहज रूप में करता है और सरल रूप में उपासना करता है ।अघोर ऐसे मस्तोलो का जगह नहीं जहाँ बस बाह्य नशा कर झुमा जा सके । अघोर संगती स्वयं ही नशा है । उस नशे का भाव शायद ब्रम्हांड में कही नहीं मिल सकता है । ऐसा नशा जिसमे साधक शरीर पञ्च भूतों के बंधन से मुक्त स्वछन्द विचरण करता है । मन की गति से विचरण करता है ।
                                  शैशव काल से सामाजिक रूप से बनायी गयी श्रद्धा के भाव को जिसमे इश्वर का अस्तित्व बस मंदिर और पूजा स्थल तक होता है उसे त्याग कर वापस उसी रूप में जाना होता है । शिशु हर समय अपनी माँ को खोजता रहता है और उसकी माँ का चेहरा सबसे प्यारा लगता है । उसी प्रकार माँ उसे अपने नजर से दूर नहीं होने देती । हर क्षण उसकी जरुरत पूरी करती रहती है । वापस उसी शैशव काल में जाना पड़ता है , हर वस्तु एवं हर जीव में समझना होता है और श्रद्धा के भाव को वृहद् करना होता है ।
अलख आदेश ।।।



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