Friday 13 February 2015

क्षोभ और संसार

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 

                                  क्षोभ शायद मनुष्य जीवन का हिस्सा बन गया है । सांसारिक को संसार में रहने का क्षोभ , मनुष्य को मनुष्य योनि में आने का क्षोभ , सन्यासी को संन्यास में होने का क्षोभ , पुत्र को पिता से क्षोभ , पिता को पुत्र से क्षोभ । जो मिला उससे क्षोभ जो ना मिला उसका क्षोभ ।
                                  हे साधक जो मिला उससे प्रसन्न रहो । जैसे मिला या मिलेगा वह महामाया का प्रसाद है । प्रसाद समझ के ग्रहण करो । प्रसाद हमेशा सर्वोत्तम ही होता है । बहाने न खोजो कि यह ऐसे ख़राब है वो वैसे ख़राब है । शरीर है तो शरीर से प्रेम करो त्याग कर परम बनने की चाह में इस शरीर को निरर्थक ना समझो । मात्रि कष्ट के चरम सीमा से प्राप्त हुए इस शरीर से ही यह ज्ञान, बात करने और सोचने की क्षमता प्राप्त हुई है । महामाया के परम रूप को जानने का अवसर मिला है । तो अब इससे ही घृणा क्यों?
                               जब तक है प्रेम करो और विदेह बनने का प्रयास करो । जब शरीर से आत्मा का प्रस्थान हो जायेगा तो परम बनने का प्रयास करना । शायद क्षोभ में ही क्षोभ को परिभाषित किया जा सकता है । शायद इसिलिए क्षोभ करने वाले मनुष्य पर मेरा क्षोभ ।।
अलख आदेश ।।।

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