Tuesday 10 February 2015

अघोर साधना

                                
                                      ॐ सत नमो आदेश श्रीनाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

                                             अघोर साधक को कुछ भी पाने के लिए कठिन से कठिन एवं अति उग्र अनुभूतियों से गुजर कर ही कुछ पाना होगा । वीर मार्गी साधना में अनुभूतियाँ भी अति उग्र होती हैं। मस्तिस्क की जागृत अवस्था और अर्ध सुप्तावस्था में द्वन्द होता है । जब तक जागृत मस्तिस्क कार्य करेगा अर्द्ध सुप्त मस्तिस्क (जो साधना के बल पर जागृत होता है ) नहीं जागेगा ।
                                                     कई अनुभूतियों में शरीर का विलीन होना एवं जल में डूबने के समान अनुभूति होती है । शक्तियां अलग अलग रूप से अनुभूति प्रदान करती हैं । जो साधक की साधनाओं का पथ प्रदर्शन करती हैं । किसी को नाग की अनुभूति , सर्प से जकड़ने की अनुभूति , कहीं ऊँचाई से गिरने की अनुभूति । वीर साधना अनेकानेक अनुभूतियों का भण्डार है । पर अनुभूतियों में आवश्यक है जागृत अवस्था को खोने देना । साधक अक्सर उन अनुभूतियों में भय वश जागृत अवस्था में आने के लिए छटपटाने लगते हैं । यह तो बस अर्द्ध सुप्तावस्था है । इन अनुभूतियों के पश्चात ही शक्ति का आगमन है ।
                                                          शुरुआत में भय तो होता ही है । चाहे आप मसान में पहली बार जाओ या किसी शक्ति के आलिंगन में । उस भय को किनारे कर इष्ट एवं गुरु पर पूर्ण विश्वास रख कर कि कुछ नहीं होगा । करवाने और देखने वाले देख रहे हैं सब उन पर छोड़ कर आगे बढ़ना ही साधना में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना है ।
                                                           पर कुछ साधक इन परीक्षाओं से बिना गुजरे सब कुछ पाना चाहते हैं । पिछली पोस्ट के बाद एक महानुभाव ने कहा ,” मुझे कलवा चाहिए ।”

क्या शक्तियां ऐसे ही मिल जाती हैं ?? क्या कलवा कोई हलवा है जो उठाया और दे दिया ??

                                                    किसी भी शक्ति को धारण करने से पूर्व साधक को सक्षम होना होता है । अगर साधक सक्षम ना हुआ तो शक्ति साधक का अनिष्ट कर चली जायेगी । अगर जलता हुआ अंगार हाथों पे उठाना है तो हाथ को लौह का बनना होगा ।सर्वोपरि है गुरु मन्त्र जो आपको सक्षम बनाता है । उसके उपरान्त साधनाएं शुरू होती हैं ।अन्यथा किसी भी साधना की शुरुआत हानि कारक है ।
                                                       साधना करें और किसी भी शक्ति को पानी की लालसा ह्रदय में कदापि ना रखें । जब शक्तियों को आपकी क्षमता का दर्शन होगा और स्वार्थ रहित विचार एवं साधना होगी तो शक्तियों का साथ निरंतर एवं हर क्षण रहेगा ।
अलख आदेश ।।

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