Friday 13 February 2015

अघोरी और अघोर साधक

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 

अघोरी और अघोर साधक:

                                 अघोर का अर्थ तो स्वयं महाकाल श्री अघोरेश्वर अलख पुरुष शिव शम्भो महारुद्र हैं । जिन्हें श्मशान सबसे अधिक प्रिय है । जो सत्यता का सर्वोपरि उदहारण है । सत्य में निवास करते महादेव । मोह माया के घोर से घोर रूप में मनुष्य में समाहित फिर भी अघोर प्रेम होकर भी बंधन नहीं । सबसे मुक्त ।
उन्ही के आचरण को समाहित करते साधक अघोर पंथ के साधक होते हैं । 

अघोर पंथ के मुख्य चरण होते हैं
                              अनुयायी – साधक – औघड़ – अघोरी – परम हंस ।।।

                                अनुयायी ऐसा साधक है जो वीर मार्गी साधना में अग्रसर हो अघोर को समझ कर भय मुक्त प्रेम करे । घृणा मुक्त कार्य करे । अघोरेश्वर महादेव में लीन होने का प्रयास करे । अक्सर जन्म जन्मान्तर के साधना क्रम को समाहित कर अघोर पंथ की ओर अग्रसर होता है । साधक के भाव लक्षण और झुकाव मार्ग को प्रशस्त करते हुए गुरु के समक्ष खड़ा कर देते हैं ।
                           साधक के भाव को समझ जब गुरु उसे दीक्षा देते हैं । उसका पुनर्जन्म होता है । ज्ञान चक्षु खोल गुरु उसे संसार एवं संसार में ही उपस्थित दुसरे संसार को दिखाते हैं । साधना देते हैं । तब अनुयायी साधक के रूप में जन्म लेता है । गुरु द्वारा प्रदत्त साधनाओ को करता हुआ बिना किसी इक्षा के बिना किसी मांग के बस साधना करता रहे । उसे अघोर साधक कहते हैं । साधक उस समय ग्रहण मुद्रा में रहता है । गुरु से संसार से गुरु भाइयों से गुरु तुल्य वरिष्ठ साधकों से ग्रहण करता रहे । अनुभूतियाँ और शक्तियों को अर्जित करता रहे । भटकाव की संभावना इस चरण में सबसे ज्यादा होती है । साधक अपने आप को औघड़ या अघोरी साबित करने लग जाते हैं । ज्ञान और शक्ति का घड़ा भरा नहीं और लगे सबको बांटने । शक्तियां भी जिस प्रकार आती हैं उसी प्रकार जाने का भी मार्ग खोजती हैं । शक्तियों का अनुभव हुआ और संसार में शक्तियों के द्वारा अपनी प्रसिद्धि पाने की लालसा में प्रयोग और दिखावा शुरू कर दिया । मेरा नाम लेकर ना पुकारो । इज्जत दो मुझे । तुमने मेरे लिए कुछ क्यों नहीं किया । द्वेष के भाव । मैं तो अघोरी हूँ यह बर्बाद कर दूंगा । ऐसा नहीं किया तो वो कर दूंगा । वो नहीं किया तो बर्बाद कर दूंगा । ऐसे में इष्ट तो बैठा मुस्कुराए की आप भटके । उसने तो दोनों रस्ते दिखाए । पर संसार में उपाधि और उपयोगिता के लोभ में तो साधक भागे भटकाव की तरफ । संयम और इक्षाशक्ति के बल पर साधक आगे बढ़ सकता है ।
                              साधक के उपरान्त औघड़ की स्थिति आती है जब इष्ट के दर्शन हो जाएँ । साधक फिर अति उग्र साधनाओं की तरफ गुरु आज्ञा से अग्रसर हो जाए । क्रोध से भरा हुआ पर अति सौम्य । साधना और गुरु के समक्ष किसी का कोई औचित्य नहीं । भय घृणा द्वेष और मोह का नामोनिशान नहीं । जब पूर्णता की ओर अग्रसर । ऐसी अवस्था जब ग्रहण मुद्रा में भी हो और दाता के भाव भी । ना ही मसान की शक्तियों का भय ना ही किसी और का ।
                              दहाड़ता हुआ हुंकार भरता हुआ, मस्त मौला अपने राह पर अग्रसर । शक्तियों के भण्डार को सम्हालता हुआ औघड़ । ना किसी से सम्मान की इक्षा ना अपमान करने का भय । करो तो अपने लिए ना करो तो भी अपने लिए । हर कार्य में इष्ट की इक्षा । नाम लेकर पुकारो या बाबा या नाथ जी । कोई फर्क नहीं । बस भाव का संबोधन सर्वोच्च । क्रोध में आकाश और धरती को चक्की बना दे प्रेम में गंगा घुमा दे ।
                            पूर्णता को समेटे भरे हुए ज्ञान पात्र को समेटे । सिद्धियों को पुत्री जैसा सम्मान देकर अघोरी की सांसारिक रूप में पूर्ण अवस्था को प्राप्त करे अघोरी । शांत सौम्य अति प्रेम की परिभाषा को जग में दर्शाते हुए अघोर पंथ का सांसारिक अंतिम लक्ष्य । जब ना मोह है ना बंधन । अघोरेश्वर के समक्ष बैठा अघोर साधक । भूत भविष्य वर्तमान का ज्ञान रखने वाला साधक । विधी के विधान को प्रेम पूर्वक सम्मान करता हुआ पूर्ण साधक । भक्तों एवं साधकों के समक्ष ढाल की तरह खड़ा गुरु । ना संसार में रहने का मोह ना ही सांसारिक उपाधियों से संयुक्त होने की चाह ।
                      अघोरी नामधारी तो कई मिल जायेंगे पर अघोरी वास्तविकता में कौन यह तो अघोरेश्वर ही जाने । नाम लिख लेने से अघोरी हो जाए तो मैं अघोरेश्वर रख लूं अपना नाम । पर सत्यता तो यही रहेगी की चूहे का नामकरण गजराज हो गया ।अपने आशीर्वाद भर से भक्त का सम्पूर्ण कल्याण करते अघोरी । अघोरत्व की पूर्णता समेटे अघोरी संसार में कुछ समय के लिए ही निवास करते हैं ।
                     अघोर पंथ की परम अवस्था है परम हंस । जब अघोरी को ना भूख प्यास लगे । परम से इकाकार हो जाए । शून्य में समाहित हो जाए । सूक्ष्म शरीरों के माध्यम से भक्तों के निकट रहे । शिष्यों का कल्याण करें । तब संसार को त्याग कर अघोरी एकांत वास शून्य में सशरीर समाहित हो जाते हैं । अघोर साधक या तो साधना में मरते हैं या फिर कभी नहीं । पूर्णता में सम्पूर्ण समाहित अघोर साधक संसार से विलीन हो जाते हैं । ऐसे में कई गुरु तत्व रुपी सूक्ष्म रूप शरीर धारी गुरु तत्व संसार में हैं । जिनका चिंतन और मनन एवं सधना उनकी कृपा का पात्र बनाती है ।
अलख आदेश ।।।

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