ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश
अघोरी और अघोर साधक:
अघोर का अर्थ तो स्वयं महाकाल श्री अघोरेश्वर अलख पुरुष शिव शम्भो
महारुद्र हैं । जिन्हें श्मशान सबसे अधिक प्रिय है । जो सत्यता का सर्वोपरि
उदहारण है । सत्य में निवास करते महादेव । मोह माया के घोर से घोर रूप में
मनुष्य में समाहित फिर भी अघोर प्रेम होकर भी बंधन नहीं । सबसे मुक्त ।
उन्ही के आचरण को समाहित करते साधक अघोर पंथ के साधक होते हैं ।
उन्ही के आचरण को समाहित करते साधक अघोर पंथ के साधक होते हैं ।
अघोर पंथ के मुख्य चरण होते हैं
अनुयायी – साधक – औघड़ – अघोरी – परम हंस ।।।
अनुयायी – साधक – औघड़ – अघोरी – परम हंस ।।।
अनुयायी ऐसा साधक है जो वीर मार्गी साधना में अग्रसर हो अघोर को समझ कर
भय मुक्त प्रेम करे । घृणा मुक्त कार्य करे । अघोरेश्वर महादेव में लीन
होने का प्रयास करे । अक्सर जन्म जन्मान्तर के साधना क्रम को समाहित कर
अघोर पंथ की ओर अग्रसर होता है । साधक के भाव लक्षण और झुकाव मार्ग को
प्रशस्त करते हुए गुरु के समक्ष खड़ा कर देते हैं ।
साधक के भाव को समझ जब गुरु उसे दीक्षा देते हैं । उसका पुनर्जन्म होता
है । ज्ञान चक्षु खोल गुरु उसे संसार एवं संसार में ही उपस्थित दुसरे संसार
को दिखाते हैं । साधना देते हैं । तब अनुयायी साधक के रूप में जन्म लेता
है । गुरु द्वारा प्रदत्त साधनाओ को करता हुआ बिना किसी इक्षा के बिना किसी
मांग के बस साधना करता रहे । उसे अघोर साधक कहते हैं । साधक उस समय ग्रहण
मुद्रा में रहता है । गुरु से संसार से गुरु भाइयों से गुरु तुल्य वरिष्ठ
साधकों से ग्रहण करता रहे । अनुभूतियाँ और शक्तियों को अर्जित करता रहे ।
भटकाव की संभावना इस चरण में सबसे ज्यादा होती है । साधक अपने आप को औघड़ या
अघोरी साबित करने लग जाते हैं । ज्ञान और शक्ति का घड़ा भरा नहीं और लगे
सबको बांटने । शक्तियां भी जिस प्रकार आती हैं उसी प्रकार जाने का भी मार्ग
खोजती हैं । शक्तियों का अनुभव हुआ और संसार में शक्तियों के द्वारा अपनी
प्रसिद्धि पाने की लालसा में प्रयोग और दिखावा शुरू कर दिया । मेरा नाम
लेकर ना पुकारो । इज्जत दो मुझे । तुमने मेरे लिए कुछ क्यों नहीं किया ।
द्वेष के भाव । मैं तो अघोरी हूँ यह बर्बाद कर दूंगा । ऐसा नहीं किया तो वो
कर दूंगा । वो नहीं किया तो बर्बाद कर दूंगा । ऐसे में इष्ट तो बैठा
मुस्कुराए की आप भटके । उसने तो दोनों रस्ते दिखाए । पर संसार में उपाधि और
उपयोगिता के लोभ में तो साधक भागे भटकाव की तरफ । संयम और इक्षाशक्ति के
बल पर साधक आगे बढ़ सकता है ।
साधक के उपरान्त औघड़ की स्थिति आती है जब इष्ट के दर्शन हो जाएँ । साधक
फिर अति उग्र साधनाओं की तरफ गुरु आज्ञा से अग्रसर हो जाए । क्रोध से भरा
हुआ पर अति सौम्य । साधना और गुरु के समक्ष किसी का कोई औचित्य नहीं । भय
घृणा द्वेष और मोह का नामोनिशान नहीं । जब पूर्णता की ओर अग्रसर । ऐसी
अवस्था जब ग्रहण मुद्रा में भी हो और दाता के भाव भी । ना ही मसान की
शक्तियों का भय ना ही किसी और का ।
दहाड़ता हुआ हुंकार भरता हुआ, मस्त मौला अपने राह पर अग्रसर । शक्तियों के भण्डार को सम्हालता हुआ औघड़ । ना किसी से सम्मान की इक्षा ना अपमान करने का भय । करो तो अपने लिए ना करो तो भी अपने लिए । हर कार्य में इष्ट की इक्षा । नाम लेकर पुकारो या बाबा या नाथ जी । कोई फर्क नहीं । बस भाव का संबोधन सर्वोच्च । क्रोध में आकाश और धरती को चक्की बना दे प्रेम में गंगा घुमा दे ।
दहाड़ता हुआ हुंकार भरता हुआ, मस्त मौला अपने राह पर अग्रसर । शक्तियों के भण्डार को सम्हालता हुआ औघड़ । ना किसी से सम्मान की इक्षा ना अपमान करने का भय । करो तो अपने लिए ना करो तो भी अपने लिए । हर कार्य में इष्ट की इक्षा । नाम लेकर पुकारो या बाबा या नाथ जी । कोई फर्क नहीं । बस भाव का संबोधन सर्वोच्च । क्रोध में आकाश और धरती को चक्की बना दे प्रेम में गंगा घुमा दे ।
पूर्णता को समेटे भरे हुए ज्ञान पात्र को समेटे । सिद्धियों को पुत्री
जैसा सम्मान देकर अघोरी की सांसारिक रूप में पूर्ण अवस्था को प्राप्त करे
अघोरी । शांत सौम्य अति प्रेम की परिभाषा को जग में दर्शाते हुए अघोर पंथ
का सांसारिक अंतिम लक्ष्य । जब ना मोह है ना बंधन । अघोरेश्वर के समक्ष
बैठा अघोर साधक । भूत भविष्य वर्तमान का ज्ञान रखने वाला साधक । विधी के
विधान को प्रेम पूर्वक सम्मान करता हुआ पूर्ण साधक । भक्तों एवं साधकों के
समक्ष ढाल की तरह खड़ा गुरु । ना संसार में रहने का मोह ना ही सांसारिक
उपाधियों से संयुक्त होने की चाह ।
अघोरी नामधारी तो कई मिल जायेंगे पर अघोरी वास्तविकता में कौन यह तो अघोरेश्वर ही जाने । नाम लिख लेने से अघोरी हो जाए तो मैं अघोरेश्वर रख लूं अपना नाम । पर सत्यता तो यही रहेगी की चूहे का नामकरण गजराज हो गया ।अपने आशीर्वाद भर से भक्त का सम्पूर्ण कल्याण करते अघोरी । अघोरत्व की पूर्णता समेटे अघोरी संसार में कुछ समय के लिए ही निवास करते हैं ।
अघोरी नामधारी तो कई मिल जायेंगे पर अघोरी वास्तविकता में कौन यह तो अघोरेश्वर ही जाने । नाम लिख लेने से अघोरी हो जाए तो मैं अघोरेश्वर रख लूं अपना नाम । पर सत्यता तो यही रहेगी की चूहे का नामकरण गजराज हो गया ।अपने आशीर्वाद भर से भक्त का सम्पूर्ण कल्याण करते अघोरी । अघोरत्व की पूर्णता समेटे अघोरी संसार में कुछ समय के लिए ही निवास करते हैं ।
अघोर पंथ की परम अवस्था है परम हंस । जब अघोरी को ना भूख प्यास लगे ।
परम से इकाकार हो जाए । शून्य में समाहित हो जाए । सूक्ष्म शरीरों के
माध्यम से भक्तों के निकट रहे । शिष्यों का कल्याण करें । तब संसार को
त्याग कर अघोरी एकांत वास शून्य में सशरीर समाहित हो जाते हैं । अघोर साधक
या तो साधना में मरते हैं या फिर कभी नहीं । पूर्णता में सम्पूर्ण समाहित
अघोर साधक संसार से विलीन हो जाते हैं । ऐसे में कई गुरु तत्व रुपी सूक्ष्म
रूप शरीर धारी गुरु तत्व संसार में हैं । जिनका चिंतन और मनन एवं सधना
उनकी कृपा का पात्र बनाती है ।
अलख आदेश ।।।
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