Friday 13 February 2015

औघड़ वाणी

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 

                           औघड़ वाणी : किसी भी भाव की क्षमता का आंकलन तब होता है जब वह अपने से बेहतर या उच्य कोटि के भाव वाले पुरुष से मिले । कुछ साधक कहते हैं मैं पूर्ण शिष्य हूँ । शिष्यता पूर्णतः मेरे अंदर भरी हुई है । पर इसका आंकलन तो स्वयं गुरु ही करते हैं । शिष्य होना अनुयायी होना या साधक होना व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है । स्वः से आंकलन करना ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक मेंढक कुँए के एक क्षोर से दुसरे तक चला जाए और कहे मैं कोई भी नदी या समुद्र को पार कर सकता हूँ ।
                        अघोर में स्वः प्रतिष्ठा का सवाल ही नहीं उठता है । साधक बिना कोई इक्षा किये साधना करता है । शक्तियों की प्रबलता से उत्पन्न भाव को समाप्त करना होता है । जब स्वः के भाव बढ़ें तो गुरु के समक्ष खड़े हो जाओ । गुरु आपके भाव को समझ कर आपसे बेहतर साधक से मिला देंगे ।
अलख आदेश ।।।



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