Friday 13 February 2015

सम भाव

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 

                                    सम का अर्थ है हर परिस्तिथि में सम रहना । हर इक्षा पे सम रहना हर भाव में सम रहना ।। मनुष्य हर सुविधाओं में जल्दी आकर्षित हो जाता है । ऐसी इक्षाएं बुलबुले के सामान होती हैं। जब इक्षा पूरी हो जाए तो समाप्त हो जाती है ।
                               ऐसी इक्षाओं  के पीछे क्या भागना जिनका जीवन कुछ समय के लिए है । मनुष्य की क्षमता को आँका जाए तो बर्फ से भरी वादी में नग्नावस्था में रह सकता है । समय काल और परिस्तिथि मनुष्य की इक्षा शक्ति के अटल भाव को नहीं बदल सकते हैं । तो सम भाव का अर्थ है जब मनुष्य अपनी इक्शाओन के रहते हुए भी उनपे नियंत्रण करे । किसी भाव या इक्षा में ना भटके ।अडिग और अटल रहे ।
                               इक्षा और भाव महामाया की माया है । माया में भटके किसी भी रूप में तो माँ के अंचल में खोने के सामान है । आँचल में खोना है या माँ की गोद में दग्ध पान करना है । साधक की इक्षा पर निर्भर करता है ।
                           क्रोध तो आएगा ही । सम्भोग का भाव तो होगा ही । भय तो होगा ही । पर क्या ये भाव साधक को नियंत्रित करेंगे या साधक इनोए नियंत्रण करेगा । यह साधक पर निर्भर करेगा । अगर क्रोध में भटके तो माया जाल में भटके । अगर क्रोध आया और उस बुलबुले को समय से पहले नष्ट कर सके आप साधक हैं । अन्यथा मनुष्य । भय से आगे ना बढे तो भटके । अतः इन सारे भाव को सम भाव से देखो । और स्वयं से नियंत्रित करो ।



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