Friday 13 February 2015

मोक्ष का अर्थ

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 

                                    मोक्ष का अर्थ है मुक्ति । जब सारे बंधन , सारी इक्षाएं समाप्त हो जाये । जब ना शरीर की चिंता हो ना ही शारीरिक संबंधों की । जब मृत्यु समीप हो तब व्यक्ति अपने आप को समर्पित कर दे । जब उसे प्राण त्यागने में कोई बंधन ना हो । ना दुःख हो ना ही क्षोभ हो ।  और आत्मा बिना किसी व्याधि के परमात्मा से मिल जाये ।
 
पर किसी को मृत्यु के बाद मोक्ष मिला या नहीं मिला यह कैसे पता ? मृत्यु के बाद सभी गुणगान करते हैं । कोई बुरा नहीं बोलता । तो क्या मोक्ष की प्राप्ति हो गयी ?

                                मोक्ष की सत्यता का प्रमाण सांसारिक की शांत और सौम्य रूप में शरीर का त्याग होता है जब आत्मा शरीर के बन्धनों को त्याग सहश्रार में सिमट जाती है । और सहश्रार से देव दूतों के साथ प्रस्थान कर जाती है ।
                              पर एक साधक जो जीवन भर साधना में लगा रहा हो उसके लिए मोक्ष क्या है  । साधक के लिए मोक्ष है जब उसे सशरीर किसी भी बंधन की अनुभूति ना हो ।  जब उस साधक को किसी भी घृणा द्वेष मोह माया बंधन की अनुभूति ना हो ।संसार में रह कर भी सांसारिक ना हो । बंधन में रह कर भी बंधन में ना हो । प्रेम करके भी प्रेम ना करे । सब सम हो जाये ।  ना किसी के उकसाने से भड़के ना ही किसी के अपशब्द से क्रोध करे ।जब एक साधक संसार में रह कर मुक्त हो जाये तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।
                         पर मुक्ति दिखाने या अभिनय करने से नहीं मिलती । ना ही मोक्ष की इक्षा रखनी चाहिए । संतों का कथन है जब सोचना या मुक्ति की चाह समाप्त कर दिया तब मोक्ष स्वयं प्राप्त हो जाता है । शरीर तथा सांसारिक बंधन भी शुन्य हो जाते हैं ।
                      मोक्ष सशरीर प्राप्त हो तो सर्वोत्तम है । मनुष्य विदेह हो परम हो जाता है । परमात्मा की अनुभूति स्वयं में करता है । सभी अपने लगते हैं अन्यथा सभी पराये ।
अलख ।।।


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