Sunday 15 February 2015

औघड़ वाणी

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश 


औघड़ वाणी : संतो की प्रवृति सम होती है । कोई शत्रु नहीं होता । शत्रुता के लिए कोई स्थान नहीं होता। मनुष्य ही बस कृपा पात्र नही होते । अपितु पशु पक्षी जीव सभी से प्रेम होता है ।
संतो की पहचान बस भगवे से या तिलक से नहीं होती ।
संत सान्निध्य में श्वान मुस्कुराते हैं । गाय सर झुका देती हैं । पक्षी उनके पास आ चह चहाते हैं ।
मूसक उनके ऊपर कूदते हैं । नाग बिना फुन्फ्कारे देखते रहते हैं । जो खाते हैं सबको देते हैं । स्थान की पवित्रता अपवित्रता का भान नहीं होता।
इसलिए कहते हैं संत विरले ही मिलते हैं और संत सान्निध्य कृपा से ही मिलता है ।
“अब मोहि बा भरोस हनुमंता बिनु हरी कृपा मिलही नहीं संता”
अलख आदेश ।।।
http://aadeshnathji.com/aughad-wani2/ 

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