ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश
कई भेद के स्वरुप मसान अघोर में मुख्य 4 तरह के माने जाते हैं ।
श्मशान या मसान विश्व का सर्वोच्य एवं उत्कृष्ट शिवालय है । ऐसा स्थान
जहाँ वैराग्य एवं आध्यात्म की यथोचित परिभाषा प्राप्त होती है । जहां पर
शिव एवं शक्ति के प्रचंड रूप का दर्शन होते हैं। शिव तत्व जब जीव् से
विसर्जित हो जीव को शव बना देता है । तब काली उस शव पर सवार हो प्रचंड
अट्टहास करती है । जीव के बंधन को कर्तनी से काट कर बंधन मुक्त कर देती है ।
ऐसे ही स्थान पर अघोरी अपना स्थान बनाते हैं । महाकाल महामाया का
सान्निध्य , वैराग्य का स्थान एवं साधारण मनुष्य जिन तत्वों से घृणा करता
है । दूर भागता है , उन सबको महामाया का स्वरुप मान अघोर उसी में रमता है ।
मसान ऐसा स्थान है जहां पर आने वाले व्यक्ति के भाव की महत्ता होती है ।
नियम से पूर्ण और नियम के विपरीत । कुछ मनुष्य वैराग्य के दर्शन हेतु एवं
अंतिम गत को जानने हेतु श्मशान जाते हैं और कुछ साधना करने । कुछ भूत
प्रेतों को देखने और उनकी अनुभूति करने की लालसा से जाते हैं । पर आने वाले
की श्रद्धा पर निर्भर करता है कि उसे वह क्या मिलेगा ।
अलग अलग मान्यताएं हैं मसान को लेकर । पर साधना के लिए श्मशान से उपयुक्त जगह कहीं नहीं है ।अघोर मुख्यतः ऐसे मसान में स्थान बनाते हैं जहां सभी प्रकार के संस्कार होते हों ।
कई भेद के स्वरुप मसान अघोर में मुख्य 4 तरह के माने जाते हैं ।
1. कच्चा मसान :- श्मशान का वह स्थल जहाँ पर 12 साल से छोटे बच्चो का
संस्कार किया जाता है । उन्हें या तो प्रवाहित किया जाता है या समाधी दी
जाती है । ऐसे बच्चो की आत्मा को कलवा भी कहते हैं ।
मसान में एक ऐसा स्थान भी होता है जहा पर गर्भ सुता स्त्रियों के देहांत पर उनको समाधी दी जाती है । गर्भ मे पल रहे शिशु को निकाल कर उनके साथ उनको समाधी दी जाती है ।
मसान में एक ऐसा स्थान भी होता है जहा पर गर्भ सुता स्त्रियों के देहांत पर उनको समाधी दी जाती है । गर्भ मे पल रहे शिशु को निकाल कर उनके साथ उनको समाधी दी जाती है ।
2. पक्का मसान : मसान जहा पर चिता हवन किया जाता है ।
3. जागृत मसान: कई ऐसे श्मशान हैं जहा पर चिता अखंड रूप में जलाने की
व्यवस्था होती है । जहा अगर शव ना आये तो पुतला बना कर जलाया जाता है ।
4. महा शमशान : महा शमशान भारत वर्ष में बस चार ही हैं । हर अघोर
संप्रदाय का अपना एक मसान होता है । जहा पर पूर्व काल में अघोर साधक को
दीक्षा के बाद 12 साल का समय व्यतीत करना होता था ।
अघोर के तीन मुख्य साधना निर्धारण में शिव साधना में साधक अपने अंदर के
शिवांश को जगा कर मसान साधना कर पता है औत अंत में अत्यंत दुष्कर शव साधना
की ओर अग्रसर होता है ।
अलख आदेश ।।।
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