ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश
औघड़ वाणी : मनुष्य किसी साधक में एक अलोकिक प्रकाश देखते हैं । प्रकाश पुंज को खोजते हुए जब प्रकाश पुंज की ओर अग्रसर होते हैं । जब प्रकाश की ओर बढ़ते हैं । तब प्रकाश पुंज तेज होता जाता है संग में उस प्रकाश की ऊष्मा भी तेज होती है । शरीर का तेज एवं ऊष्मा में भी वृद्धि होती है । जब प्रकाश पुंज के निकट होते हैं तब शरीर से भी तेज निकलता है ऊष्मा निकलती है प्रकाश निकलता है । अगर साधक उस समय इस भान में रहे कि तेज, ऊष्मा या प्रकाश उससे प्रवाहित हो रहा है तो भटक जाता है ।
इस बात को भूल जाता है कि प्रकाश परम पुंज से निकल कर उससे मात्र प्रवाहित हो रहा है। कुछ साधक प्रकाश पुंज तक पहुँचने से पहले ही बैठ कर अपने आप को परम समझने लगते हैं ।
अपितु परम तो कुछ और दूरी पर है ।
जो साधक परम तक पंहुचा और परम प्रकाश पुंज में समाहित हो गया वह उसी में लीन हो गया ।
अलख आदेश ।।।
http://aadeshnathji.com/aughad-waani4/
औघड़ वाणी : मनुष्य किसी साधक में एक अलोकिक प्रकाश देखते हैं । प्रकाश पुंज को खोजते हुए जब प्रकाश पुंज की ओर अग्रसर होते हैं । जब प्रकाश की ओर बढ़ते हैं । तब प्रकाश पुंज तेज होता जाता है संग में उस प्रकाश की ऊष्मा भी तेज होती है । शरीर का तेज एवं ऊष्मा में भी वृद्धि होती है । जब प्रकाश पुंज के निकट होते हैं तब शरीर से भी तेज निकलता है ऊष्मा निकलती है प्रकाश निकलता है । अगर साधक उस समय इस भान में रहे कि तेज, ऊष्मा या प्रकाश उससे प्रवाहित हो रहा है तो भटक जाता है ।
इस बात को भूल जाता है कि प्रकाश परम पुंज से निकल कर उससे मात्र प्रवाहित हो रहा है। कुछ साधक प्रकाश पुंज तक पहुँचने से पहले ही बैठ कर अपने आप को परम समझने लगते हैं ।
अपितु परम तो कुछ और दूरी पर है ।
जो साधक परम तक पंहुचा और परम प्रकाश पुंज में समाहित हो गया वह उसी में लीन हो गया ।
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