Monday 9 February 2015

औघड़ वाणी

                                      ॐ सत नमो आदेश श्रीनाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

                                          
                                               औघड़ वाणी : अघोर की आकांक्षा रखे साधक का भटकाव होना अवश्यम्भावी है । जब तक भटकाव नहीं होगा तब तक महामाया की माया समझ नहीं आएगी । भटको अवश्य भटको पर भटकने के बाद अपने गंतव्य को समझने का प्रयास करो । भटकाव को समझने के लिए आवशक है ग्रहण मुद्रा । शक्ति को पाने के बाद उसी में रमने और प्रदर्शन से पहले आवश्यक है ग्रहण मुद्रा को समक्ष रखना । अगर ग्रहण मुद्रा में ना रहे तो स्वः प्राथमिकता ले लेगा ।
                                             अक्सर नए साधको को देखता हूँ अघोर में आये और स्वयं को अघोरी और औघड़ बताने लगे । अघोरी और औघड़ की परिभाषा कहीं ऊँची है । कुछ कहते हैं मुझे भय नहीं लगता कहीं भी बिठा दो । दंभ भाव में जब उनको अघोरानुभुती होती है तो फिर गुरु पर सवाल उठाने लगते है ।
हमारे सदगुरुदेव का वचन है जो गुरु कहे वो करो जो करे वो कदापि ना करो । उनकी शक्ति और सामर्थ्य कहीं ऊँचा है । उनकी एक ताली से मसान भयंकर रूप लेकर समक्ष आ जाता है ।

                                                  और जब नए साधक अपने आपको समर्थ समझ मसान को गुरु के ही तरह से जगाने का प्रयास करते हैं तब कुछ हासिल नहीं होता है । अगर कोई उन्हें कुछ बताये तो स्वः को समर्थ समझ उनसे भिड जाते हैं ।गुरु पराकाष्ठा पर विराजित होकर भी जब सीखने का मौका मिलता है सीखने का प्रयास करते हैं ।  तो उनके इसी भाव को समक्ष रख कर इसी भाव से ग्रहण मुद्रा को प्राथमिकता दें । जीवन और शरीर नश्वर है । आत्मा इसी ज्ञान और स्वः को समझ कर शिव के समक्ष जाती है और त्रुटी होने पर वापस जन्म लेती है ।
अलख आदेश ।।।




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