Sunday 15 February 2015

सृष्टि एक भ्रम

                              ॐ सत नमो आदेश श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

                                 श्रृष्टि की रचना का उद्देश्य क्या है यह तो ज्ञात नहीं । पर अगर तर्कानुसार सोचता हूँ तो कभी ऐसा प्रतीत होता है जैसे महाकाल महादेव एक ऐसे मनुष्य जिन्होंने परम अवस्था को सर्वप्रथम प्राप्त कर लिया । परम अवस्था को प्राप्त देव स्वरूपी परब्रम्ह हो गए समयानुसार दर्शन दे कर सबको ज्ञान और भक्ति का मार्ग दर्शन दिया ।
                              कभी लगता है कि हम सब महामाया और महादेव के क्रीडा स्थल पर खेल रहे हैं । जैसे umpier के हाथ ने points देने की क्षमता हो । बस उनका खेल हम खेलें और जिसका खेल उत्तम लगा उसे points मिल गए । नियम भी उन्ही के खेल भी उन्ही का कानून भी उन्ही के । हम खेल में तल्लीन हो खेले जा रहे हैं ।
सब कुछ महामाया के हाथ में कैसे है यह तो स्वयं किसी भी कार्य में समझ सकते हैं । आप कोई भी कार्य करें पर अंत में क्या फल होगा यह भी नहीं पता होता । क्या पता काम ही ना बने । क्या पता काम रुक जाये और क्या पता सोची समझी हुई कार्य प्रणाली काम ही ना करे ।
                                 पर जहाँ तक मुझे लगता है भगवान् का एक रूप हमारे अंदर भी है । जिसे जागृत करने से अपनी इक्षा के अनुसार कार्य किया जा सकता है । जब स्वयं का ब्रम्ह जागृत हो जाये तो महामाया भी उस कार्य में बाधा नहीं उत्पन्न कर पाती है । अन्यथा रावन सबसे महान था । उसे भूत भविष्य और वर्तमान ज्ञात था तो दंभ क्यों करता और मृत्यु को प्राप्त करता । शास्त्रों में भी कहा गया है स्वयं के ब्रम्ह को जागृत करो ।
इसिलए शास्त्रों में स्वयं को जागृत करने और नियंत्रित करने की बात कही गयी है । कार्य करो पर स्वयं को ब्रम्ह बना कर साधारण मनुष्य की तरह ही रहो । विदेह होने की उत्तम प्रणाली है ।
अलख ।।।

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